सरहद पार से पिया का ख़त आया है,
पढ़कर जो मची हलचल तो फिर जवाब भिजवाया है...
पढ़कर जो मची हलचल तो फिर जवाब भिजवाया है...
ऐ नटखट सांवरी
माना जो तुने मुझे चाँद ,पर तू ह मेरी चांदनी ,
अधूरा हूँ में तेरे बिन ,जेसे तेरे बिन ये कहानी,
लिखा जो ख़त तुने मुझे, पढ़ कर आँखें बहाल हो गयी,
समझूंगा ये जिन्दगी, अगर ये धरती मेरे रक्त से लाल हो गयी,
लेकर सात फेरे संग तुम्हारे ,जो वादा किया रक्षा करने की तुम्हारी ,
लेकर जन्म भारत भूमि पर ,की हो जाऊं इसके लिए बलिहारी ,बलिहारी ।।
कल शाम एक कटी पतंग ने आँखों में आंसू ला दिए ,
तुम्हारे हाथो से बने तिल के लड्डू याद दिला दिए,
उस कटी पतंग को लूटने की जद्दोजहद, और वो नटखट शोर,
वो हंसी,वो काटा, और वो हंसी,
मेरी सांवरी की याद दिला गयी,
होली की वो शाम ,मुझे आज भी याद है,
जब तुमने मचाया शोर ,पीकर भांग, बोले आज क्या इंतजाम है,
वो गाँव का चक्कर ,वो नहर में डुबकी,
वो खेतों में चिल्लाना,और मेरी गोद में आकर जेसे तूफ़ान का थम सा जाना ,
वो प्यार भरी आँखें,वो लहराती जुल्फें ,
वो लड्डू जसी नाक, आज फिर शैतानी जगा गयी ,
इस शांत दिल में हलचल मचा गयी
वो हंसी फिर आज,
मेरी सांवरी की याद दिला गयी।।