; Damaged Think Tank: January 2012

Sunday, January 29, 2012

ऐ नटखट सांवरी


 सरहद पार से  पिया का ख़त आया है,
पढ़कर जो मची हलचल तो फिर जवाब भिजवाया है...

ऐ नटखट सांवरी 
माना जो तुने मुझे  चाँद ,पर तू  ह मेरी चांदनी ,
अधूरा हूँ में तेरे बिन ,जेसे तेरे बिन ये कहानी,

लिखा जो ख़त तुने मुझे, पढ़ कर आँखें बहाल हो गयी,
समझूंगा ये जिन्दगी, अगर ये धरती मेरे रक्त से लाल हो गयी,
लेकर सात  फेरे संग तुम्हारे ,जो वादा किया रक्षा करने  की तुम्हारी ,
लेकर जन्म भारत भूमि पर ,की हो जाऊं इसके लिए बलिहारी ,बलिहारी ।।

कल शाम एक कटी पतंग ने आँखों में आंसू ला दिए ,
तुम्हारे हाथो से बने तिल के लड्डू   याद दिला दिए,
उस कटी पतंग को लूटने की जद्दोजहद, और वो नटखट शोर,
वो हंसी,वो काटा, और वो हंसी,
मेरी सांवरी की याद दिला गयी,

होली की वो शाम ,मुझे  आज भी याद है,
जब तुमने मचाया शोर ,पीकर भांग, बोले आज क्या इंतजाम है,
वो गाँव का चक्कर ,वो नहर में डुबकी,
वो खेतों में चिल्लाना,और मेरी गोद  में आकर जेसे तूफ़ान का थम सा जाना ,
वो प्यार भरी आँखें,वो लहराती जुल्फें ,
वो लड्डू जसी नाक, आज फिर शैतानी जगा गयी ,
इस शांत दिल में हलचल मचा गयी 
वो हंसी फिर आज,
मेरी सांवरी की याद दिला गयी।।

 

Wednesday, January 25, 2012

अंखियो के झरोखों से


अंखियो के झरोखों से 

बाट  जोहती मेरी आँखें , उस आँगन में ,
सूख गये मेरे  आंसू, अब पिया की यादों में,
उस आँगन की तस्वीर अब आँखों से जाती नहीं,
हर सूखे पत्ते की आहट, उन्हे घर लाती नहीं,
सुबह उठे शाम ढले ,है बस एक ही  इंतज़ार,
इन अंखियो के झरोखों से देखू 
रात के साए में टिमटिमाता मेरा प्यार, 

वो उनके  शायराने अलफ़ाज़ आज भी दिल में बसे है,
खिलाती उनकी हंसी ,आँगन के हर कोने में छिपी है,
वो गली में खेलते बच्चो को उनका डांटना ,
फिर सहमते बच्चो को देख खुद खेल में शामिल हो जाना ,
बसंत के इंतज़ार में झडते पत्तो की आवाज़ के बीच ,
वो आवाज़ कहीं खो जाती है 
फिर हरियाले पत्तो के बीच संग झूला झूलने की यादें आती है 
इन अंखियो के झरोखों से देखू 
बारिश की बूंदों के बीच मेरा प्यार ,मेरा प्यार
इन अंखियो के झरोखों से