अंखियो के झरोखों से
बाट जोहती मेरी आँखें , उस आँगन में ,
सूख गये मेरे आंसू, अब पिया की यादों में,
उस आँगन की तस्वीर अब आँखों से जाती नहीं,
हर सूखे पत्ते की आहट, उन्हे घर लाती नहीं,
सुबह उठे शाम ढले ,है बस एक ही इंतज़ार,
इन अंखियो के झरोखों से देखू
रात के साए में टिमटिमाता मेरा प्यार,
वो उनके शायराने अलफ़ाज़ आज भी दिल में बसे है,
खिलाती उनकी हंसी ,आँगन के हर कोने में छिपी है,
वो गली में खेलते बच्चो को उनका डांटना ,
फिर सहमते बच्चो को देख खुद खेल में शामिल हो जाना ,
बसंत के इंतज़ार में झडते पत्तो की आवाज़ के बीच ,
वो आवाज़ कहीं खो जाती है
फिर हरियाले पत्तो के बीच संग झूला झूलने की यादें आती है
इन अंखियो के झरोखों से देखू
बारिश की बूंदों के बीच मेरा प्यार ,मेरा प्यार
इन अंखियो के झरोखों से
waah waah,,
ReplyDeletewaah waah,!! mast hai re chhore, tu to fir se form mein aa rha hai.. :D