; Damaged Think Tank: उड़ता पंछी(2)

Friday, December 2, 2011

उड़ता पंछी(2)

एक विचार जो  मन में आया
मन का पंछी फिर उड़ पाया
पंछी के पंख, हमारे अपने होंसला देते है
जो हो साथ उनका तो हर पल एक नया सपना देते है |

कौन कहता है सपने सच नहीं होते है
जो हो नजरिया कुछ पाने का तो मेहनत
के हर पायदान रंगीन होते है|


ऐ पंछी उड़.. पर न हो सपने कुछ इस कदर की
जूनून हो उड़ने का , और हम  भूलें अपना ही घर
हर उड़ान के बाद लौट कर घर आना होता है
न हो गर साथ अपनों का तो हर सच सपना भी बैगाना होता है

जीवन की दौड़ और सफलता के संघर्ष में लोग
अपनों को भूल  जाते है,
होता है एहसास तब सफलता के मुकाम पर खुद को तनहा पाते है,


सपने हो लाख चाहे ऊँची उड़ान के ,
पर आज भी पापा की अंगुली पकड़ कर चलना अच्छा लगता है,
जो हो साथ अपनों का अगर , तो ही
हर सपना सच्चा लगता है,


जीवन की सफलता मन की ख़ुशी में है
मन की ख़ुशी अपनों के साथ में है,
साथ है गर अपनों का तो
जहान है,जहान है जहान है ||


1 comment:

  1. kya yaaar,, tum to ek hi baar mein pro ho gye.. ekdam mast hai re.. bahut hi achcha laga..bas aise hi chalu rakho.. aur padhai ka bhi dyaan dena...

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